हर 10 में से एक व्यक्ति को अपने जीवन में कैंसर होने की संभावना: डब्ल्यूएचओ

हर 10 में से एक व्यक्ति को अपने जीवन में कैंसर होने की संभावना: डब्ल्यूएचओ

नरजिस हुसैन

पिछले 20 सालों से लगातार वैश्विक आर्थिक मंदी के दौर में भारत ने जिस तरह से खुद की अर्थव्यवस्था को संभाला ही नहीं बल्कि इस बीच 7 प्रतिशत तक सालाना बढ़ाया भी वह वाकई काबिले तारीफ है। मृत्यु दर घटी, शिक्षा ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंची और उससे गरीबी, कुपोषण और भुखमरी को भी काबू किया गया। 1990-2017 का दौर वह दौर था जब सकल घरेलु उत्पाद की प्रति व्यक्ति बढ़कर 26 फीसद तक पहुंच गई थी। इसका नतीजा यह निकला कि लोगों का सामाजिक-आर्थिक स्तर तो बढ़ा लेकिन, उससे कई और बीमारियों की रफ्तार तेजी पकड़ गई जिसमें नॉन-कम्युनिकेबल यानी असंचारी बीमारियां सबसे ज्यादा थी।

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लेकिन, इन सारी सफलताओं पर पानी फेरती दिखी विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा वलर्ड कैंसर रिपोर्ट, 2018। इस रिपोर्ट ने यह बताया कि भारत में 2018 में करीब 1.16 मिलियन कैंसर के नए मामले आए, 784,800 मौतें कैंसर के चलते हुई और 1.35 बिलियन की आबादी वाले इस देश में 2.26 मिलियन कैंसर के मामले बीते पांच सालों में दर्ज किए गए।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर 10 में से एक व्यक्ति को अपने जीवन में कैंसर होता है और 15 में एक मरने वालों में कैंसर ही बड़ी वजह होती है। भारत में छह किस्म के कैंसर आम है- ब्रेस्ट कैंसर (162,500 मामले), मुंह का कैंसर (120,000 मामले), सर्विकल कैंसर (97,000), फेफड़ो का कैंसर (68,000), पेट का कैंसर (57,000 मामले) और कोलोरेक्टल कैंसर (57,000 मामले) दर्ज किए गए। इन सभी मामलों मिलाकर अगर देखा जाए तो ये कुल कैंसर के मामलों के 49 प्रतिशत मामले थे। जहां पुरुषों में मुंह, फेफड़ों, पेट, कोलोरेक्टल और ओयसोफगेल कैंसर के मामलों में 45 फीसद तक की बढ़ोतरी हो रही है वही दूसरी तरफ महिलाओं में छोती का कैंसर, सर्विकल, ओवरी, मुंह और कोलोरेक्टल कैंसर के मामले बढ़कर 60 प्रतिशत के पहुंच गए हैं।

रिपोर्ट ने यह भी पाया कि भारत में लगातार छाती यानी ब्रेस्ट कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं। 1.4 प्रतिशत से बढ़कर 2.8 फीसद तक बढ़ने वाले ये मामले ग्रामीण से ज्यादा शहरी इलाकों में रहने वाली औरतों में देखने में आ रहे हैं। इस कैंसर का प्रसार और इसके मामले शहरों में देखने के अलावा रिपोर्ट बताती है कि मोटापा और कम शारिरीक मेहनत करने के कारण ये कैंसर शहरी महिलाओं को ज्यादा तेजी से अपनी चपेट में ले रहा है। हालांकि, दूसरी तरफ सर्विकल कैंसर की घटनाओं में कुछ गिरावट भी देखी गई है। अपने देश के कुछ हिस्सों में कम होने के बावजूद भारत में पूरी दुनिया में सर्विकल कैंसर के 1/5 मरीज रह रहे हैं। इसलिए भारत में अगर सर्विकल कैंसर की रोकथाम चुस्ती से हो तो पूरी दुनिया में इस कैंसर की रोकथाम सार्वजनिक स्वास्थ्य की समस्या की दिशा में बड़ा कदम साबित हो सकता है।

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भारत में कैंसर के ज्यादातर मामले तंबाकू और उससे संबंधित चीजों के कारण होते हैं इसलिए मुहं और गले का कैंसर भारतीय पुरुषों में ज्यादा देखने में आया है। उधर, महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर का खतरा बढ़ता जा रहा है। यहां समझने की बात यह है कि ये दोनों ही कैंसर कम सामाजिक-आर्थिक स्तर के परिवारों में ज्यादा देखने में आ रहे हैं। ब्रेस्ट और कोलोरेक्टल कैंसर मोटापा, बढ़ता वजन, कम शारिरिक काम और लंबे समय तक बैठे रहने का काम की वजह से बढ़ते जा रहे हैं। ब्रेस्ट कैंसर उच्च सामाजिक-आर्थिक परिवारों में ज्यादा देखने में आता है जहां अनाज, सब्जियों और पोषक खाने की जगह अंडा, मांस, मछली, डेयरी प्रोडेक्ट, डिब्बाबंद खाना और कोल्ड डिंक्रस वगैरह का इस्तेमाल खाने में ज्यादा होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट इस बात पर भी जोर देती है कि दुनिया में 10 देश ऐसे हैं जहां 64 प्रतिशत पुरुष सिगरेट पीते हैं और इनमें तीन देश तो ऐसे हैं जहां इस संख्या का अकेला 50 फीसद पुरुष रहते हैं वे हैं- चीन, भारत और इंडोनेशिया। भारत में 164 मिलियन लोग धुआंरहित तंबाकू का सेवन करते हैं, 69 मिलियन बीड़ी-सिगरेट पीते हैं और 42 मिलियन बीड़ी-सिगरेट के साथ चबाने वाला नशा भी करते हैं (गुटखा, खैनी, पान मसाला वगैरह)।

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भारत में 90 फीसद मुहं के कैंसर के मरीज कम सामाजिक-आर्थिक परिवारों से होते हैं। पुरुषों में होने वाले कैंसर के कुल मामलों में 34-69 प्रतिशत तंबाकु जनित होते हैं। इसी तरह कोलोरेक्टल कैंसर के मामले विकसित राज्यों और शहरी इलाकों में ज्यादा देखने में आ रहे हैं। रिपोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि वक्त रहते कैंसर के मामलों को रोका जा सकता है लेकिन उसके लिए बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं का होना जरूरी है। 2000-2015 के बीच जहां अमीर देशों में 20 फीसद तक इन बीमारियों को काबू किया जा सका वहीं विकासशील देशों में इसकी दर 5 प्रतिशत थी।

भारत में सरकार को सबसे पहले सार्वजनिक स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ाना होगा देश में स्वास्थ्य शिक्षा और जागरुकता की भी भारी कमी है उसपर भी ध्यान दे सरकार तो बेहतर होगा क्योंकि इस पूरी रिपोर्ट को पढ़ने से यही पता लगा कि देश में गरीबी और अज्ञानता के कारण आज भी कैंसर जैसी कई अन्य जानलेवा बीमारियों को सरकार लाख कोशिशों के बाद भी चुस्ती से नहीं रोक पा रही है।

 

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